भारतीय समाज एक ऐसा समाज है जहाँ विभिन्न सभ्यताओं का पुष्प्पन एवं पल्लवन हुआ . कितना अद्द्भुत है ना हमारा भारतीय समाज . भारतीय समाज अन्य समाजों से इस अर्थ में अद्वितीय है क्योंकि विभिन्न सभ्यताएँ एक दुसरे से भिन्न होते हुए भी परस्पर सहिश्रुता के साथ अनंत काल से एक दुसरे से सीखते सीखाते साथ -साथ रहतीं चली आ रहीं है . विश्व पथ प्रदर्शक एवं सोंचिरैंया ( सोने की चिड़ियाँ ) इत्यादि उपमाओं से नवाज़ें जाने वाले भारतवर्ष के यदि वैश्वीकरण के दौर में स्वयं को प्रासंगिक रखना या तो वैश्विक मूल्यों, विचारों , संकल्पनाओं इत्यादि के साथ सामंजस्य एक आवश्यक शर्त बन चुकी थी . गोस्वामी तुलसीदास द्वारा लिखित " क्षिति ,जल , पावक , गगन ,समीरा , पंच रचित अति अधम शरीरा।
हमारा शरीर प्रकृति के पांच तत्वों से मिलकर बना है यानी प्रकृति की पूजा जो सिर्फ हमारे भारतीय समाज में होती है . परिवर्तन प्रकृति का नियम है लेकिन जब परिवर्तन अपने चरम सीमा पर हो तब प्रलय की नौबत आ जाती है . ऐसा ही कुछ हमारे भारतीय समाज के साथ हो रहा है . पाश्चातय मूल्यों के भारतीय समाज में आगमन का सबसे बड़ा भुक्तभोगी बना हमारा भारतीय समाज . उदहारण - क्रिकेट के सामने हमारे राष्ट्रीय खेल हॉकी की दुर्दशा , पुष्टाहार भोजन रोटी -दाल की जगह लेता असंतुलित आहार बर्गर एवं पिज़्ज़ा , स्वास्थ्यवर्धक खेल गुल्ली डंडा , कबड्डी और खो -खो की जगह लेता अस्वस्थ खेल वीडियो गेम . उपर्युक्त परिस्थियों ने भरतीय समाज में विभिन्न प्रकार के असंतुलनों को जन्म दिया .
जबकि भारती समाज योग दर्शन माध्यम से संतुलन को अपना आदर्श मानता आया है आज फिर से जरुरत है बच्चों को रामायण महाभारत उपनिषद चार युगो , महाराणा प्रताप ,पन्ना धाय ,गार्गी ,नचिकेता की कहानियों के बारे में बताने और पढ़ाने की जिससे उनका सही चरित्र निर्माण हो सके और वह समाज को नई दिशा दे सके तथा भारतीय सांस्कृतिक विरासत से बिछड़ते जा रहे युवा एक संतुलित जीवन जीने की राह पर चले जैसे सोन चिरैया पुरे ब्रह्माण्ड का का विचरण कर अपने घोसले में आ जाती है उसी प्रकार मनुष्य कहीं भी विचरण करें परन्तु उसे शांति अपने सामाजिक संस्कृति में ही मिलती है तेजी से लुप्त हो रही सोन चिरैया को राष्ट्रिय पक्षी बनाने की बात उठ चुकी थी भारतीय संस्कृति भारत की ऐसी गहरी जड़ों के समान है जो सतत रूप से भारत को जीवंत बनाए रखे हुए हैं।सोन चिरैया आज के वैश्विकृत समाज में भारतीय संस्कृति एवं उसके विभिन्न घटकों को न केवल संरक्षित करके बल्कि आम जीवन में इन संस्कृतिक घटकों की प्रासंगिकता को स्पष्ट करने की भी एक पहल है।
अगर भारतीय संस्कृति के पुनर्जागरण का सफल प्रयास न हुआ तो डर है की लुप्त अवस्था में आ जाए सोनचिरैया एक प्रयास है भारतीय समाज को संतुलित दिशा देने का l