बचपन में हम कहानी सुना करते थे और पढ़ा करते थे कि भगवान हमारी परीक्षा लेने के लिए रूप बदलकर धरती पर कभी भी आ सकते हैं। कोई भी मान्यताएं यूं ही नहीं बन जाती इसके पीछे कोई सच्चाई जरूर होती है जब मैं बड़ी हुई तो मुझे लगा बच्चों को डराने के लिए ऐसी बातें कही जाती थी लेकिन बुढ़िया माई का मंदिर का इतिहास जानने के बाद मुझे लगा कि लोक मान्यताओं को हम सत्य माने या झूठ लेकिन एक बात तो तय हैए कि यह सच्चाई अनुभूति एवं तथ्य पर आधारित होती है। बुढ़िया माई का मंदिर गोरखपुर जनपद से 10 किलोमीटर दूर कुसु कुसुम्ही जंगल में स्थित है। कुसुम्ही जंगल जाने के लिए गोरखपुर से बहुत साधन उपलब्ध है। मंदिर जाने के लिए कसया रोड स्थित विनोद वन के सामने मंदिर के मुख्य गेट से कुसुम्ही जंगल में लगभग 1 किलोमीटर पैदल चलकर माता के मंदिर पहुंचेंगे।
बुढ़िया माई के लिए वैसे तो अनेक मान्यताएं हैं लेकिन एक और मान्यता यह है कि यहां जंगल में आदिवासी रहते थे। उनकी जनजाति थारू थी। थारू जनजाति के लोग जंगल में देवी की पूजा सात पिंडिंया बनाकर करते थे। इस जनजाति के कुछ वंशज बताते हैं कि इन पिंडिंयों के पास सफेद साड़ी पहने एक बूढ़ी महिला दिखाई देती थी जो कि पल में ही ओझल हो जाती थी। वही एक व्यक्ति बताते हैं कि बुढ़िया माई जिससे नाराज होते हो जाती थी उसका सर्वनाश तय था और जिससे खुश रहती थी उसकी हर मनोकामना पूर्ण होती। जंगल में जाते हुए आपको सबसे पहले जो मंदिर दिखता है वह नया मंदिर है उस नाले के उस पार प्राचीन मंदिर है। वहां नाले को पार करने के लिए कोई लकड़ी का पुल नहीं बना। नदी पार करने के लिए नाव से जाना पड़ता है। कहते हैं बुढ़िया माई से मन से जो मन्नत मांग पूरी हो जाती है और इनकी पूजा.अर्चना का खास महत्व इसलिए है कि कहते हैं कि व्यक्ति को अकाल मृत्यु से मुक्ति मिलती है।