सोनचिरैया

घाघरा चोली

0 | 30 Aug 2022
घाघरा चोली
आपने लहंगा और चोली के ऊपर हिंदी सिनेमा में अनेकों गाने सुने होंगे जैसे, यह गोटेदार लहंगा आया पंजाब सेए चोली के पीछे क्या है "चुनरी के नीचे क्या है" लहंगे में घोटा लगा ने चली थी फंसी चुड़ी चने के खेत में। इससे पता चलता है कि लहंगा चोली का हमारे भारतीय जीवन शैली पर कितना प्रभाव है। भारतीय पारंपरिक परिधानों के बारे में अगर बात करना शुरू करें और उनकी बारिकियों में जाए तो पाएंगे कि यह काफी विस्तृत है। समय काल और परिस्थिति जैसे जीवन के आयामों को प्रभावित करती है वैसे ही परिधान भी समय की जरूरत के हिसाब से बदलते गए आज जिस लहंगा चोली का स्वरूप हमारे सामने है वह बदला हुआ स्वरूप है। प्राचीन काल में यह तीन टुकड़े में पहना जाता थाए कमर पर। धोती नुमा कपड़ा बंधा रहता था इसे अंतिया कहते थे। स्तन पर बंधे कपड़े को स्तन पट् और कंधे पर रखा जाने वाला कपड़ा उत्तरीय कहलाता था। इस प्रकार देखा जाए तो प्राचीन भारत में महिलाओं को अपने ढंग से जीने की आजादी थी क्योंकि उनका लगभग पूरा शरीर खुला रहता था। चाणक्य के समय देखे 320 बीसी तब महिलाएं अंतिया को एक नया रूप देकर घाघरा बना दिया जो कि नाभि के नीचे डोरी से बांधा जाता और कमरबंद से सजाया जाता इसकी लंबाई घुटने तक की होती थी और चोली सिर्फ इतनी कि तन को ढके। आज भी अगर मध्य प्रदेश या छत्तीसगढ़ के क्षेत्र में जाएं तो पाएंगे आदिवासी महिलाओं का लहंगा कमर से लेकर पैरों तक घाघरा नाभि के ऊपर ब्लाउज और पीछे पूरी पीठ खुली हुई सर पर दुपट्टा। भारत के हर राज्य में लहंगा पारंपरिक परिधान है हरियाणा में कुर्ता और घुटने तक घाघरा सर पर दुपट्टा इसे "खेल" कहते हैं। पंजाब में घाघरा चोली "खोला" कहते हैंए घुटने तक लंबा ब्लाउज या कुर्ता होता हैए तमिलनाडु एवं अन्य दक्षिण भारतीय राज्य में आधी साड़ी पहनने का प्रचलन है जिसे तमिल में "पवदाई दवानी", तेलुगु में "लंगा वोनी", कन्नड़ में "लंगा दावनी" कहते हैं। घाघरा चोली रोजमर्रा के जीवन में पहनते थे लेकिन साड़ी और सलवार कुर्ते ने उनकी जगह ले ली लेकिन यदि आज भी आप राजस्थान या अन्य आदिवासी या अन्य प्रदेश की दादी नानी को देखेंगे तो पारंपरिक परिधान में ही देखेंगे घाघरा चोली ने अपनी जगह आज भी बनाई हुई है वैसे आज भी महिलाएं शादी त्यौहार में लहंगा पहनना पसंद करती हैं
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