सोनचिरैया

साड़ी

0 | 30 Aug 2022
साड़ी
"साड़ी बीच नारी है कि नारी बीच साड़ी हैए नारी है कि साड़ी है साड़ी है कि नारी है।"

महाकवि भूषण द्वारा रचित यह दोहा साड़ी की खूबसूरती को बताता है तथा उनके प्रति विश्व नेता को भी अगर इसे अलंकार से सुशोभित करें तो यह संदेह अलंकार को परिभाषित करता है यह दोहा महाभारत के चीर हरण के भाग को दर्शाता है जब भरी राज सभा में दुरूशासन अपने बड़े भाई दुर्योधन के कहने पर अपनी भाभी द्रोपदी को उसके आराम कक्ष से बालों से घसीटना हुआ राज सभा लाता है और अपनी भाभी का भरी राज सभा में चीर हरण करता हैए लेकिन भगवान कृष्ण की कृपा से दुरूशासन द्रौपदी को वस्त्रहीन नहीं कर पाता। अतः साड़ी का पर्वत बन जाती हैए समझ नहीं आता यह साड़ी है कि नारी इससे साड़ी एक रक्षा कवच के रूप में प्रकट होती है। भारत में साड़ी पहनने की परंपरा कैसे शुरू हुई? भारतीय संस्कृति में पूजा पाठ हवन का बहुत महत्व है वेदों के अनुसार पूजा हवन पर बैठने के लिए सिले हुए वस्त्र पहनना निषेध है। इसलिए साड़ी जो 5.5 से 6 मीटर की होती है हमारे पारंपरिक परिधान में शामिल हुई। भारतीय पारंपरिक साड़ी पूरे विश्व में पसंद की जाती है और सबसे अहम बात साढ़े 5 मीटर साड़ी को इतने तरीके से भारतीय महिलाएं पहनती है यह विदेशियों के लिए कौतूहल का विषय है। साड़ी का उल्लेख सबसे पहले यजुर्वेद संहिता में मिलता है। ऋग्वेद संगीता के अनुसार यज्ञ हवन करते समय साड़ी पहनना अनिवार्य है यदि आप आदिमानव काल से देखें तो पाएंगे कि महिलाएं साड़ी पहना करती थी और जैसे-जैसे नई-नई सभ्यताओं का उदय हुआ साड़ी हर जगह विद्यमान थी। साड़ी पहनने का तरीका वहां की भौगोलिक स्थिति और परिस्थिति पर निर्भर करता था। कृषक एवं आदिवासी महिलाएं घुटने तक की साड़ी पहना करती थी क्योंकि वह खेत में काम करने पशु चराने जंगल से लकड़ी काटने जाया करती थी। धनाढ्य घरों की महिलाएं पूरे पैरों तक साड़ी पहनती थी। भारत में अनेक तरह की साड़ियां हैं जो अपने क्षेत्र की विशेषता को दर्शाती है जिनमें सर्वप्रथम है बनारसी साड़ीए महाराष्ट्रीयन साड़ी। इसी तरह साड़ी के कपड़ों का भी अनेक प्रकार है। सूती की साड़ीए रेशम की साड़ी, तात की साड़ीए उनकी साड़ी ।
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