सोनचिरैया

प्राचीन गंवई खेलों का अस्तित्व समाप्त होने की कगार पर।

हिमांशु कोहली | 28 Aug 2022
प्राचीन गंवई खेलों का अस्तित्व समाप्त होने की कगार पर।

पहले के समय में गांव की एक अलग पहचान हुआ करती थी। आज गांव में तमाम प्राचीन परम्पराओं व भारतीय खेलों के साथ गंवई खेलों का अस्तित्व समाप्त होने की कगार पर है। दशकों पहले गांवों में गंवई खेलों की चहलकदमी से गांव गुंजायमान हुआ करते थे। लेकिन गांव में अब सूनापन दिखाई देता है। प्रदेश स्तरीय खेल तथा शारीरिक प्रशिक्षक बाल गोबिन्द सिंह ने बताया पहले गांव में चीका गुल्ली डण्डा, ऊँची कूद ,भैया तू कहवां भैया हम इहवां,संख्या टोली बनाना आदि खेल से युवाओं का शारीरिक तथा मानसिक विकास होता था,अब इन खेलों की चहलकदमी गांव में देखने को नही मिलती है्रै। गांवों में खेल मैदान, खेल संसाधनों की कमी, बच्चों में क्रिकेट तथा मोबाईल के प्रति बढ़ता लगाव के अलावा सरकारों द्वारा गंवई खेलों के विकास में अपेक्षित ध्यान नही दिया जाना इसका प्रमुख कारण है। मण्डलस्तरीय शारीरिक शिक्षक रामानन्द तिवारी ने बताया क्रिकेट के प्रति युवाओं में बढ़ रहा लगाव प्राचीन भारतीय खेलों के विकास में बड़ा अवरोध है। प्राचीन भारतीय खेलों तथा गंवई खेलों में शारीरिक विकास के अलावा छुआ - छूत असमानता जैसी सामाजिक बुराइयाँ समाप्त करने की ताकत होती थी। कबड्डी में हर खिलाड़ी एक दूसरे खिलाड़ी का पैर पकड़ने के लिए उत्सुक रहता है। तीन पैरी दौड़ में एक खिलाड़ी दूसरे तथा तीसरे खिलाड़ी का दांया तथा वायां पैर दौड़ शुरू होने से पहले कपड़ा से अपने हाथ से बांधता था । इससे असमानता छूआ- छूत जैसी कुरीति समाप्त करने में समाज को मदद मिलती है।खो- खो में खेल मैदान के अलावा मात्र दो खम्भो की जरुरत होती है इसमें दोनों टीमों में नौ-नौ खिलाड़ी खेलते है तथा आठ खिलाड़ी अतिरिक्त रहते है। यह भारत का लोकप्रिय खेल है। प्राचीन समय में महाराष्ट्र में रथ पर खेला जाता था इसलिए इसे ,,रथेड़ा,, नाम से भी जाना जाता है ।बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में इसके नियम बनायें गये।देश में 1914 में इसकी पहली स्पर्धा हुई।  शारीरिक शिक्षक श्वेताजीत ने कहाँ गांव में पहले बच्चियाँ भी गंवई खेलो की हिस्सा हुआ करती थी लुका- छिपी, खो - खो, गुड्डा गुड़िया आदि इनकी पसंदीदा खेल था, जो शारीरिक विकास के अलावा मानसिक विकास में काफी मददगार थे । जो अब गाँव में देखने को नही मिलते। बच्चें सुबह शाम जब एक दूसरे बच्चों के साथ खेलते थे उनमें आपसी लगाव बढ़ता था । स्वस्थ मनोरंजन होता था। आज इन खेलो के प्रति लगाव कम होने से युवाओं में नशावृत्ति मानसिक असंतुलन पैदा होने से आत्महत्या की घटनाओं में वृद्धि हो रही है। समाज में कटुता बढ़ रही है । बयोवृद्ध सामाजिक व्याक्ति रामजतन विश्वकर्मा ने कहा पहले जमाने में खेंलें जाने वाला गुल्ली डण्डा,ओल्हा पाती जैसी तमाम गंवई माटी की खेल अब देखने को नही मिलती । इन खेलो में खेल मैदान के अलावा खेल संसाधन की कम जरूरत पड़ती थी।कभी गांव में गांव भर के बच्चें अलग -अलग टोलियों में खेल खेलते थे और गॉव के लोग दर्शक बनकर रोज खेल देखते थे तथा अच्छा प्रदर्शन करने वाले बच्चों को शाबासी देते थे । प्राचीन भारतीय खेलों के साथ गंवई खेलों के विलुप्त होने से गांवो का सामाजिक ताना बाना भी कमजोर हो रहा है । प्राचीन गंवई खेलो का सर्वेक्षण कराकर ग्रामीण युवा वर्ग के लिए गांवों में खेल संसाधन मुहैया कराने के अलावा इसे राष्ट्रीय खेल में शामिल करने की जरूरत है । अन्यथा प्राचीन गंवई खेलों का अस्तित्व समाप्त हो जायेगा जो आने वाली पीढ़ी के लिए इतिहास बनकर रह जायेगा ।

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