शहर के वातानुकूलित कमरे में बैठकर जब गांव के चाचा.चाची अपने भाई.बहनए दादी.बाबाए नानी.नाना याद आते हैं तो वह हमें वातानुकूलित कमरे से भी ज्यादा ठंडक और सुकून का एहसास देते हैं। मैं काफी सालों बाद अपने गांव गईए रेलवे स्टेशन से गाड़ी लीए टमटम ;घोड़ा गाड़ीद्ध ढूंढा पर नहीं मिलाए जैसे ही गाड़ी घर के दरवाजे पर पहुंचीए जितने लोगों को दिखा मेरा आना वह दरवाजे पर आ गए। सबके आते ही मैंने बड़ों के पैर छुए और छोटों ने मेरे पैर छुए। कुछ ने गले लगाया तो कुछ मुझे छू कर मेरी इतने सालों के बाद गांव में उपस्थित को महसूस कर रहे थे दादीयां तो आ गई लेकिन चाचीयां अपने घर के छत से देख रही थी।
यह एहसास शहर में कभी नहीं मिल सकता। गांव ना में ना कोई छोटा ना कोई बड़ा सब अपने ना किसी तरह का कोई दंभ। मदद करने और माफ करने की परंपरा। गांव में एक लड़की होते हुए भी अकेले घूमने का डर नहीं पूरे बाग.बगीचे नदी.तालाबए पोखरे अकेले घूमी। काफी दिनों बाद गई इसलिए 10 साल बाद उम्र भी बढ़ गई और चेहरे में थोड़ा परिवर्तन भी। कुछ घूमते हुए देखते तो पापा का नाम लेकर उसकी बेटी हो मैं कहती हां। उनके खेत में अगर कुछ होता तो शाम को घर भिजवा दे गांव के रिश्तो की सबसे खास बात तो यह है कि....