आज जीवन संसाधन पूर्ण है लेकिन सुख नहींए जिस भी चीज की लालसा हो वह सात समुंदर पार से भी हम तक पहुंच जाता है। पैसे देने और लेने की भी दिक्कत नहीं वह सुविधा भी है 2 मिनट में पैसे अदा करें और सामान 2 से 3 दिन में आपके पास पहुंच जाता है। अंतरराष्ट्रीय खाना आपके द्वार पर उपलब्ध है। अब शादी करने में भी ज्यादा भागदौड़ नहींए जिसके पास जितना पैसा इतनी अच्छी शादीए शादी तो अच्छी हो गई लेकिन क्या सुख मिला, सुख का मतलब क्या है परम अनुभूति परम आनंद जिनसे हमारा रोम-रोम खिल उठे। आज शादी में रीति रिवाज को दरकिनार करते हुए दूल्हा और दुल्हन पक्ष ब्यूटी पार्लर में और कपड़े के मैचिंग करने में ज्यादा व्यस्त रहते हैं। उसके बाद फोटो जो फेसबुक पर लगता हैए सब कितना बनावटी लगता है। दूल्हाए दुल्हन और रिश्तेदार के चेहरे पर लगे उस सौंदर्य प्रसाधन की वजह से सबका चेहरा संवेदनहीन लगता है। जिन्होंने गांव का जीवन जिया है वह गांव की शादी में एक दूसरे के प्रति समर्पण और प्रेम की भावनाओं को महसूस कर सकते हैं जो आज संस्कृति के साथ ही वह भी विलुप्त हो गई है। गांव से शहर में आकर बसे लोगों को गांव में किसी एक घर में शादी का मतलब होगाए पूरे गांव में खुशी का माहौल जब कोई किसी के घर की लड़की को देखने आता तो पूरा गांव वर पक्ष की मेजबानी करने के लिए जुट जाता थाए और लड़की की अच्छाइयां गिनाता था। यहां तक कि गांव की दीदीयांए भाभियां और चाचीयां अपने बनाए हुए चादरए तकियाए मेजपोश अन्य कलाकारी कढ़ाई को लड़की, वधू का बनाया हुआ कहती थी। शादी के घर में पता नहीं चलता था कि कोई सामान घटा भी है। पूरे गांव की औरतें अपने घर का काम निपटा कर शादी के घर में काम करने पहुंच जाती थीए और एक सबसे महत्वपूर्ण काम होता था हर रीति वधू पर एक गीत महिलाएं गाती थी।
सोनचिरैया आपको हर क्षेत्र और राज्य की शादी के बारे में विस्तृत जानकारी देगीए जैसे मान लीजिए वधु के घर धान कुटाई या हल्दी की रीति या फिर मटकोर की रीति होनी हो हर विध पर महिलाएं समूह में बैठकर उस विध से संबंधित गीत गाती है अब शादी के दिन वधू को तैयार होने की बारी आती है कोई भाभी ही वधु को तैयार करती है वह भी क्या बस एक लाल या पीली साड़ीए चूड़ीएआभूषणए हल्की सी होंठ की लालीए काजल और एक चुटकी पाउडर बस हो गई वधू तैयार और तो पूरा दिन चाहिए वधु को तैयार। आज की शादियों में वधु को शादी के लिए तैयार होने के लिए महीने भर से उसके मेकअप का तैयारी शुरू हो जाती है। उस गांव में दूल्हे के साथ भी बारात में हजाम आता था जो उसकी खूबसूरती का ख्याल रखें।
अब बारात आ गईए बस बारात के स्वागत में कोई कमी न रह जाए सारे लड़के अपनी लूंगी धोती को कमर में बांधकर स्वागत में लग जाते और चार बातें बारातियों की सुनकर भी मुस्कुराते रहते हैं। । उस गांव के लड़के जिन्हें लफंगों की श्रेणी में रखा जाता था वह अपने साथ दूसरे गांव के दोस्तों को भी पकड़ लाते थेए कि स्वागत अच्छा होना चाहिए ताकि बुआध् दीदी को ससुराल में पूर्ण सम्मान मिले। यह प्यार और अपनापन था था एजो आज नहीं। इसी तरह दूल्हे का द्वार पूजा जूता चुराई, द्वार छिकाइ, कोहबर, खीर खिलाना यह सारी परंपरा भरपूर प्यार और निष्ठा और सम्मान से मनाई जाती थी। दूल्हा अपने धोती कुर्ता में ही अपनी दुल्हन तथा रिश्तेदारों को मोहित करता था विवाह के लिए बहुत बड़ा काम मड़वा मंडप बनाना उसके लिए बांसए रस्सीएकर की पूरी व्यवस्था पूरा गांव आपस में जिम्मेदारी बैठकर ही करता था। फिर उस मड़वे की गाय के गोबर से लिपाई होती थी फिर कोहबर बनाया जाता था फिर गाना गाया जाता था। महिलाएं गोबर से लिपने के समय ही मड़वे में कलाकृति बनाया करती थी। यह सब आज कहां जूते चुराई और द्वार छेकाई के समय ₹101 का मिलना और यह कहना कि सारी बहनें बांट लेना भले ही एक के हिस्से में ₹5 आए पर वो खुशी आज एक लाख में नहीं जो ₹101 में थी। विदाई से पहले वधू का सामान पैक करने के लिए कोई अनुभवी चाची या भाभी आती थी की कोई सामान छूट न जाए। अब विदाई की बारी वधू जब अपने घर से रोते हुए डोलीध् बैलगाड़ीध् गाड़ी तक आती थी उतने देर में बचे हुए लोग जो घर नहीं आ पाते थे रोते हुए गाड़ी तक पहुंच जाते थेए यहां तक कि नौकर चाकर ब बड़े बुजुर्ग गांव के सब रोते रहतेए पूरा माहौल गमगीन रहता।
सवाल यह है कि यह सब लुप्त हो गयाए इस आधुनिकता को अपनाकर हमने क्या पाया सिर्फ अशांति नाए पर यह तो हमने अपनी सुख और शांति के लिए अपनाया था।
इसलिए सोनचिरैया कहती है बार-बार लौटे अपनी संस्कृति की ओर सुख .शांति प्यारए सम्मान, अपनापन जो आपको अपने गांव, मिट्टी, देश, परंपरा में मिलेगी वह कहीं नहीं।
सोनचिरैया कहती है आधुनिकता को जरूर अपनाएं लेकिन अपनी परंपरा को निभाते हुए क्योंकि पैसे से सब कुछ मिलेगा बस शांति नहीं।