भारत त्योहारों का देश है। किसी त्योहार को मनाने की वजह एक महत्व एक बस नाम और तरीके अलग। भारत में हर त्योहार को मनाने की धार्मिक मान्यतायें वैज्ञानिक आधार पर ही बनाये गये है। इसी तरह मकर संक्राति के पीछे एक खगोलिय घटना है, संक्राति का मतलब है संक्रमण यानि मकर संक्राति पौष मास मंे सूर्य देवता का धनु राशि से मकर राशि मे प्रवेश करने का संक्रमण काल। यह काल शीत कालीन अयनांत के बाद आता है यानि सर्दियों की सबसे लंबी रात 22 दिसंबर के बाद, यह सूर्य की स्थिति के हिसाब से मनाया जाता है। सीधे तौर पर समझे ंतो मकर संक्रति को सूर्य दक्षिणी गोलार्द से उत्तरी गोलार्द की तरफ आने लगता है जिससे उत्तरी गोलार्द में सूर्य के अस्त होने का समय बढ़ जाता है परिणामस्वरूप दिन लम्बा होता है और रात छोटी होती है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन भगवान सूर्य देव अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उनके घर जाते है चूंॅकि शनि मकर रााशि के देवता है इस कारण मकर संक्राति कहा जाता है। मकर संक्राति पूरे भारत के साथ नेपाल में अलग- अलग नामों के साथ मनाया जाता है। बिहार तथा उत्तर प्रदेश में इसे संक्राति तथा खीचड़ी भी कहते है। यहांॅ एक खास चावल को गरम बालू में भुनवाकर उसे गुड़ के साथ मिलाकर बड़े लड्डू के आकार का बनाते है जिसे वहांॅ लाई कहते है, तिल के लड्डू भी बनते है बिहार में इस दिन तिलकुट बनाते है जो चावल,गुड़ और तिल को एकसाथ उखल में कूट कर बनाया जाता है। बिहार में इस दिन चूड़ा-दही खाने की परम्परा है वही उत्तर प्रदेश में खीचड़ी खाते है। उत्तर प्रदेश में यह मुख्य रूप से ’दान का पर्व’ है। इलाहाबाद में गंगा, यमुना व सरस्वती के संगम पर प्रत्येक वर्ष एक माह तक माघ मेला लगता है जिसे माघ मेले के नाम से जाना जाता है। १४ जनवरी से ही इलाहाबाद में हर साल माघ मेले की शुरुआत होती है। वहांॅ पूरे भारत से लोग गंगा स्नान करने आते है। मान्यता है कि १४ जनवरी यानी मकर संक्रान्ति से पृथ्वी पर अच्छे दिनों की शुरुआत होती है। माघ मेले का पहला स्नान मकर संक्रान्ति से शुरू होकर शिवरात्रि के आखि़री स्नान तक चलता है। संक्रान्ति के दिन स्नान के बाद दान देने की भी परम्परा है। संक्राति पर गंगा घाट पर मेला लगना परंपरा के रूप मे चली आ रही है।ं इस दिन गंगा स्नान करके तिल के मिष्ठान आदि को ब्राह्मणों व पूज्य व्यक्तियों को दान दिया जाता है। इस दिन खिचड़ी खाने एवं खिचड़ी दान देने का अत्यधिक महत्व होता है। छत्तीसगढ़, गोआ, ओड़ीसा, हरियाणा, झारखण्ड, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, राजस्थान, सिक्किम, उत्तराखण्ड, पश्चिम बंगाल, गुजरात और जम्मू यहंॅा भी मकर संक्राति के नाम से जानते है।
तमिलनाडु में - पोंगल, गुजरात, उत्तराखण्ड में - उत्तरायण, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, पंजाब में - माघी, असम में - भोगाली बिहु , कर्नाटक में - मकर संक्रमण, पश्चिम बंगाल में - पौष संक्रान्ति , पंजाब में - लोहड़ी पूरे भारत में विभिन्न नामों से मनाया जाता है।
महाभारत में भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायन होने पर शरीर छोड़ने की प्रतिज्ञा ली थी।
तमिलनाडु में इस त्योहार को पोंगल के रूप में चार दिन तक मनाते हैं। प्रथम दिन भोगी-पोंगल, द्वितीय दिन सूर्य-पोंगल, तृतीय दिन मट्टू-पोंगल अथवा केनू-पोंगल और चैथे व अन्तिम दिन कन्या-पोंगल। इस प्रकार पहले दिन कूड़ा करकट इकठ्ठा कर जलाया जाता है, दूसरे दिन लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है और तीसरे दिन पशु धन की पूजा की जाती है। पोंगल मनाने के लिये स्नान करके खुले आँगन में मिट्टी के बर्तन में खीर बनायी जाती है, जिसे पोंगल कहते हैं। इसके बाद सूर्य देव को नैवैद्य चढ़ाया जाता है। उसके बाद खीर को प्रसाद के रूप में सभी ग्रहण करते हैं। इस दिन बेटी और जमाई राजा का विशेष रूप से स्वागत किया जाता है।
उत्तर भारत में गुड़, तिल, मुंॅगफली खाने की परम्परा है, ये शरीर को गरम रखते है तथा इसके विभन्न तत्व शरीर को मजबूती प्रदान करते है। इस पर्व का विभिन्न रूप भारतीय संस्कृति की झलक दिखलाता है।