सरस्वती पूजा हमारे रीति-रिवाजों तथा त्योहारों में सबसे प्रमुख है।
सुमिरेलू शारदा भवानी अहो महारानी, आगे माई शारदा भवानी,
बकुला के पखिया एइसन पहिनेलु
सड़िया जइसे सुशोभित
होता उगल बा अजोरिया
दूर करा हमरो नादानी
आहो महारानी ,
अरे माई शारदा भवानी
यह लोक गीत हर साल बसंत पंचमी के दिन गाते थे, जब फूलों पर बाहर आ जाती है खेतों में सरसों का फूल सोने सा चमकने लगता है जौं और गेहूं की बालियां खिलने लगती हैं, आम के पेड़ों पर मंजर आ जाता है और हर तरफ रंग बिरंगी तितलियां उड़ती है भवरें गुनगुनाते हैं। बसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए माघ महीने के पांचवें दिन बड़ा त्यौहार मनाया जाता है जिसे बसंत पंचमी कहकर पुकारते हैं,शास्त्रों में इसे ऋषि पंचमी भी कहते हैं बसंत पंचमी के दिन ही सरस्वती पूजा मनाया जाता है। हमारे विद्यालय में बहुत बड़ा जश्न होता था, बिना भेदभाव के सारे विद्यार्थी अपनी किताब पूजा में रखते थे, हमें कहा जाता था कि किताब की पूजा होने से हमारे पास बिना पढ़े ज्ञान आ जाएगा बालमन इसे सच समझ जोश में पूजा की तैयारी में लग जाता। इस दिन पीले रंग का बहुत महत्व होता है हमारे स्कूल में बहुत बड़ा कार्यक्रम होता था, जिसमें हम गाना तथा नाचना होता था खासकर (श्री सरस्वती माता जी ) से संबंधित गाने। आज ? बच्चे तो बच्चे हैं विद्यालय के शिक्षक भी सरस्वती पूजा मनाना भूल चुके हैं।
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