आज का जमाना सीमेंट का है और बीता जमाना मिट्टी का था इन दोनों जमानों में भिन्नता यह है कि मिट्टी के घरों के जमाने में संसाधन सीमित थे, उन्हीं सीमित संसाधनों में खुशियां जीवन शैली ढूंढ ली। जिसे सृजन (नहीं सोच) कहते हैंए लेकिन इस जमाने में असिमित संसाधन होने के साथ मानव जाति के अंदर सृजन की क्षमता खत्म सी हो गई। आज घरों को सजाने के लिए तरह.तरह के प्लास्टिक के मैट, अनेक तरह के घरेलू सजावट के सामान बाजार में उपलब्ध है। मिट्टी के जमाने में ऐसी कोई भी चीजें उपलब्ध नहीं थी। इसलिए मानव ने अपने घरों को सजाने के लिए एक नई चित्रकारी ढूंढ निकाली यह चित्रकारी अलग-अलग क्षेत्रों पर अलग-अलग लोक मान्यताओं पर आधारित होती हैं। इन चित्रकारी का आधार होता था फूल, पत्ती, जंगल, मानव, पशु, बैलगाड़ी। यह इसलि, बनाते थे क्योंकि यह उस क्षेत्र की जीवनशैली होती थी। किसी क्षेत्र की जीवन शैली को ही चित्रकारी का आधार बनाया जाता है जिसे कहते हैं लोक कला।
विंड चित्रकार अनिल निषाद बताते हैं कि यह प्रदेश हुनर का प्रवेश रहा है यहां के लोग आदिकालीन सही हस्तशिल्प के कलाकार रहे हैं। आगे बताते हैं यशवंतपुर गांव के क्षेत्र में आज भी वहां के कुछ लोग अपनी इस विंड चित्रकारी की परंपरा को निभाते मिलेंगे यहां के लोग हमेशा से चित्रकारी का शौक रखते हैं। आज से करीब 30 साल पीछे जाए तो कुछ विकसित शहरों के अलावा गांव में मिट्टी के घर हुआ करते तथा घर के छत पर कु कुम्हार द्वारा बना हुआ मिट्टी का खपरैल लगाते थेए जिससे घर बारिश में सुरक्षित रह सके यहां आप एक चित्र देख रहे हैंए इस चित्र में देख सकते हैं कि एक महिला गन्ने का रस कोल्हू, यह एक प्रकार की मशीन होती है जो बैल द्वारा चलाई जाती हैद्ध से निकालते हुए जिसे दो बैल चला रहे हैंए तथा एक महिला अपने क्षेत्र के पारंपरिक परिधान में एक पेड़ की छाया में बैठकर एक-एक करके कोल्हू में गन्ना डाल रही है, सामने एक तालाब है और हिरण के बच्चे खेल रहे हैं आखिर यह चित्र बनाने की वजह क्या है?